आजकल चर्चा में है गर्म जलवायु वाले सेब की खेती

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विजय विनीत
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

सेब की खेती की जब भी बात होती है, जम्मू-कश्मीर जैसे ठंडे प्रदेशों का नाम ही जेहन में उभरता है, लेकिन अब ये धारणा बदल रही है। हरिमन शर्मा की खोज हरिमन-99 उत्तर प्रदेश जैसे गर्म प्रदेश के किसानों के लिए वरदान साबित हुआ है। खास बात यह है कि इस सेब की न्यूट्रीशन वैल्यू कश्मीर और हिमाचल के सेबों से भी ज्यादा है। आजकल सेब की इस चमत्कारिक किस्म की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, कन्याकुमारी, मुंबई जैसी जगहों पर खूब चर्चा पा रही है। आइए जानते हैं इस नई खेती के बारे में…

कृषि विषय से स्नातक 47 वर्षीय राधेश्याम सिंह पटेल ने अपने खेतों में हमेशा धान-गेहूं की फसलें ही लगाई थीं। कोविड के दौर में उन्होंने सेब की खेती की ओर रुख किया और खेत के एक हिस्से पर हरिमन-99 (HRMN-99) प्रजाति के सेब के पौधे रोपे। यह प्रजाति उस समय फल देती है, जब भीषण गर्मी में लू के थपेड़े चलते हैं और सेब काफी महंगा होता है।

बनारस के सेवापुरी प्रखंड के भटपुरवां गांव (करधना) के किसान राधेश्याम कहते हैं, ‘हमने अपनी 15 बिस्वा जमीन में सघन बागवानी पद्धति से सेब के 500 पौधे रोपे हैं, जिनमें दो साल में ही फल आने लगे। हमने इसकी खेती का इरादा तब बनाया जब मेरे भाई संजय ने हमें यू-ट्यूब पर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर (पनियाला) के बागवान हरिमन शर्मा का वीडियो दिखाया। उसी दिन हमने फैसला किया कि हम भी सेब लगाएंगे। इसके बाद हमने हरिमन शर्मा से संपर्क कर सेब के 50 पौधे मंगाए। तब हम इस खेती की तकनीक से अनजान थे। पौधों में फल नहीं लगे तो हमने उन्हें उखाड़ फेंका, लेकिन सेब की खेती के लिए दिल मचलता रहा। साल 2020 में फिर हमने हिम्मत बांधी और हरिमन शर्मा की नर्सरी से हरिमन-99 प्रजाति के सेब के 500 पौधे मंगाए। सघन बागवानी पद्धति से उन्हें रोपा और उनकी देखभाल की। दूसरे साल ही उनमें फल आने लगे। हालांकि फलों का आकार ज्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन इस साल पेड़ों पर बड़ी तादाद में सेब के फल लगे। मई माह में हमने 150 रुपये प्रति किलो की दर से सेब की बिक्री की।’
बनारस के जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार से पूर्वांचल में सेब की खेती के भविष्य के बारे में बात हुई तो उन्होंने कहा, ‘पहले यहां सेब की खेती असंभव मानी जाती थी, लेकिन सेवापुरी ब्लॉक के किसान ने यह कमाल कर दिखाया है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब जयापुर गांव को गोद लिया था तब उन्होंने सेब की हरिमन-99 प्रजाति के पौधे उस गांव के किसानों के लिए भिजवाए थे। सेब के पौधे हवाई जहाज से मंगवाए गए थे, लेकिन देख-रेख के अभाव में उनमें फल नहीं लगे। अब हम चाहते हैं कि बनारस में सेब उगाने का प्रधानमंत्री का सपना साकार हो। सेब की खेती को बढ़ावा देने के लिए कार्य योजना तैयार की जा रही है। किसानों को अनुदान देने के लिए शासन के पास जल्द ही प्रस्ताव भेजा जाएगा।’

बीटेक के बाद शुरू की सेब की खेती


उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में सेब की खेती करने वाले राधेश्याम इकलौते किसान नहीं हैं। इसकी खेती की ओर कई किसान उन्मुख हुए हैं। बनारस से सटे गाजीपुर के किसान सुनील कुशवाहा ने भी सेब का बगीचा लगाया है, जिसमें उन्होंने हरिमन-99 प्रजाति के करीब 222 पौधे रोपे हैं। सुनील के फार्म हाउस पर लगे सेब के पौधों से अब फल भी आने लगे हैं।
सुनील से कहते हैं, ‘एन एप्पल ए डे कीप्स द डॉक्टर अवे’, इस अंग्रेजी कहावत का मतलब है कि हर रोज सेब खाकर आप बीमारी और डॉक्टर दोनों को दूर रख सकते हैं। इस सोच के तहत हमने सेब का बाग लगाने की सोची। जिस समय हमने सेब के पौधे मंगवाए थे, उस समय एक पौधे की कीमत 350 रुपये थी। अब पौधों की कीमत काफी घट गई है। हम चाहते हैं कि पूर्वांचल के किसान गेहूं और धान की खेती छोड़कर सेब की खेती करें और मोटा मुनाफा कमाएं।’
सुनील कुशवाहा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद ऑर्गेनिक खेती में अपना करियर बनाने का इरादा बनाया था। गाजीपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से उन्होंने ऑर्गेनिक खेती में औपचारिक ट्रेनिंग ली और मध्य प्रदेश के सुभाष पालेकर के सानिध्य में ऑर्गेनिक खेती के गुर सीखे। वह कहते हैं, ‘सेब की खेती से हम काफी उत्साहित हैं और उम्मीद है कि अगले साल हमें हर पेड़ से 70 और 100 किलो सेब मिलेंगे। गर्मियों में सेब की कीमत 200 रुपये किलो तक पहुंच जाती है। विपरीत सीजन में सेब बेचकर आमदनी बढ़ाई जा सकती है। पहले हम सेब की खेती प्रयोग के तौर पर कर रहे थे, लेकिन अब हम इसे विस्तार देंगे।’
सुनील के अनुसार उन्होंने पूर्वांचल के किसानों को सेब की खेती के लिए मुफ्त ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया है। वे बेर पौधों पर सेब की ग्राफिंग करके पौध तैयार करने की तकनीक विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। महाराष्ट्र के कुछ किसानों ने बेर पर सेब की ग्राफ्टिंग कर पौधा तैयार करना शुरू भी कर दिया है।

डी-फार्मा के बाद मिली मंजिल

बाराबंकी के प्रयोगधर्मी किसान उत्तम वर्मा ने भी सेब की खेती में सफलता के झंडे गाड़े हैं। रामनगर इलाके के कबीरपुर गांव के प्रगतिशील किसान उत्तम ने साल 2009 में डी-फार्मा की पढ़ाई पूरी की थी। सरकारी नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने तरबूज, खरबूजा और स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की। इसी बीच सेब का बाग लगाने का विचार आया और उन्होंने तीन बीघे में हरिमन-99 प्रजाति के पौधे रोप दिए।
उत्तम वर्मा कहते हैं, ‘सेब शीतोष्ण जलवायु वाला फल होता है। इसके पौधों की ग्रोथ ठंडे इलाकों में होती है। खासतौर पर वहां, जहां की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 4800 से 9000 फुट हो। हरिमन-99 के पौधों में मार्च और अप्रैल महीने में फूल लगने शुरू हो जाते हैं। सेब की खेती के लिए 100 से 150 सेंटीमीटर बारिश की जरूरत पड़ती है, लेकिन हरिमन-99 प्रजाति वाले सेब की खेती 40-45 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी लहलहाती है। हमारे सेब के बाग में दो सालों से फल निकल रहे हैं, जिसे देखने के लिए आसपास के जिलों के किसान आ रहे हैं।’

कोविड में मिला कामयाबी का मंत्र
कोविड काल में जब लोगों की रोजी-रोटी का जरिया छिनने लगा और रोजगार के लिए लोग दर-दर भटकने लगे तब प्रयागराज के रुद्र प्रताप सिंह ने सेब उत्पादन में अपने भविष्य की तलाश की। इलाहाबादी अमरूद के लिए मशहूर प्रयागराज में रामपुर के रुद्र प्रताप ने सेब की खेती करने की ठानी। उनके परिवार में माता-पिता के अलावा पत्नी, दो बेटा और एक बेटी है। परिवार बड़ा था और खेती से काम नहीं चल रहा था। साल 2001 में वो ड्राइवरी की नौकरी करने पानीपत चले गए। बाद में उनकी कंपनी मुंबई शिफ्ट हुई तो वह अपने घर लौट आए। इसी बीच प्रयोग के तौर पर उन्होंने अपने खेत में सेब के 20 पौधे रोपे, जिनमें एक साल में ही फूल निकले और फल भी।
रुद्र प्रताप कहते हैं, ‘सेब के छोटे से पौधे में फूल और फल आए तो हम काफी रोमांचित हुए। फिर जनवरी 2020 में 150 पौधे और मंगवाए और उन्हें लगा दिया। कुछ दिन देख-रेख करने के बाद हम नौकरी करने मुंबई चले गए। कोविड का दौर आया तो फिर घर लौट आए। अब हमारे बाग में सेब के पेड़ लहलहा रहे हैं। सेब की खेती ने हमें सफलता का नया मंत्र दिया है और तरक्की का गलियारा भी खोला है। सेब के बाग को देखकर जो लोग हमारा मजाक उड़ाया करते थे, वो हमसे इसकी खेती की तकनीक सीखने आ रहे हैं।’
इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भी कुछ किसानों ने सेब की बागवानी से मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है। इनमें एक हैं तीतरो गांव के बागवान राजकुमार चौधरी और दूसरे नानौता के शहंशाह आलम। दोनों ने सेब के बाग लगाकर एक नए अध्याय की शुरुआत की है। राजकुमार चौधरी ने दो वर्ष पहले सात बीघे में अन्ना और हरिमन-99 प्रजाति के सेब के पौधे रोपे। दूसरे साल में ही इन्हें सभी पौधों से 30 से 40 फल मिले। फलों का वजन करीब 150 ग्राम था। सहारनपुर के बागवान शहंशाह आलम ने सेब के 200 पौधे लगाए थे और तीसरे साल उनमें फल आने लगे। उम्मीद है कि आठ-दस सालों में सभी पेड़ों से 30 से 40 किलो तक सेब मिलेंगे।
राजकुमार कहते हैं, ‘हमारा प्रयोग सफल रहा तो सेब की बागवानी आम और लीची की अपेक्षा अच्छा विकल्प साबित होगी।’

क्या कहते हैं हरिमन शर्मा

सेब की जिस प्रजाति हरिमन-99 ने हरहराती लू और गर्मी में किसानों को आर्थिक संबल दिया है, वह सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बिहार, हरियाणा, तेलंगाना, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र के अलावा मणिपुर, नगालैंड आदि राज्यों में भी सफलतापूर्वक उगाई जा रही है।
इसे विकसित करने वाले बागवान हरिमन शर्मा बताते हैं, ‘हिमाचल प्रदेश का बिलासपुर ऐसा इलाका है जहां गर्मी के दिनों में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। पिछले एक दशक में देश के 29 राज्यों में हरिमन-99 प्रजाति के लाखों पौधे लगाए जा चुके हैं। यह प्रजाति हमने साल 1999 में विकसित की थी। साल 2003 में इसके पौधों पर पहली बार जब सेब आए तो वे आकार में छोटे और कम गुणवत्ता वाले थे। फिर हमने थोड़ा प्रयोग किया, जिसका नतीजा यह रहा कि साल 2006 में पौधों पर जो फल लगे उनका आकार, रंग और स्वाद बिल्कुल अलग था। फलों का आकार भी अच्छा था और उनमें सुगंध भी थी। पहाड़ी इलाकों में सेब के पौधों पर आमतौर पर अप्रैल में फूल आता है और सितंबर में फल पकने लगते हैं। हरिमन-99 के पौधे फरवरी में फूलते हैं और 15 मई से 30 जून के बीच फल पक जाते हैं। यह वह समय होता है, जब बाजार में सेब का ताजा फल नहीं मिलता, तब हरिमन-99 अपना जलवा बिखेरता है।’
हरिमन शर्मा की मानें तो हरिमन-99 को रोपने के तीसरे साल पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं और 10 से 12 साल के हर परिपक्व पौधे से एक कुंतल सेब निकलने लगता है। हरिमन शर्मा बताते हैं, ‘साल 2014 में हमने दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन के उद्यान में सेब का पौधा रोपा था, जिसमें सेब फल रहे हैं। हमारी प्रजाति के पौधों के लिए अब बांग्लादेश, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, जाम्बिया और जर्मनी जैसे देशों में खरीदार मिल गए हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि अधिक से अधिक किसान इसे उगाएंगे। यह किस्म तमाम बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है। कुछ दिनों पहले मैं मणिपुर में था, जहां 202 किसानों के एक समूह ने 30,000 से अधिक हरिमन-99 के पौधे लगाए हैं।’

गर्मी वाले सेब की कई प्रजातियां
सेब पर रिसर्च करने वाले आईएचबीटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राकेश कुमार कहते हैं, ‘उत्तर भारत के गर्म मैदानी इलाकों में हरिमन-99 के अलावा अन्ना, फूजी, सन फूजी और डोरसेट गोल्डन प्रजातियां तेजी से पॉपुलर हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश और कश्मीर में पैदा होने वाले सेब को करीब एक हजार घंटे की ठंडक चाहिए होती है, जबकि लो चिलिंग वैरायटी को सिर्फ 500 घंटे की ठंडक चाहिए। मैदानी इलाके में इस तरह की ठंडक सर्दी के मौसम में दिसंबर और जनवरी में मिल जाती है।’
मेरठ के मोदीपुरम स्थित भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. दुष्यंत मिश्र ने मैदानी इलाकों के लिए सेब की ‘अन्ना’ प्रजाति विकसित की है। वह कहते हैं, ‘अन्ना प्रजाति के पौधे से एक साल में ही फूल-फल आने लगता है। इसके पौधों की लंबाई आठ फीट से ज्यादा नहीं होती है। सघन बागवानी पद्धति से इसे लगाने पर मुनाफा ज्यादा होता है। मार्च में इसकी रोपाई करने के बाद गर्मियों के मौसम में हर महीने तीन से चार सिंचाई और सर्दियों में दो सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के दिनों में सेब के पौधों की खास देखभाल की जरूरत होती है।’

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