अनुज मौर्य
The Better Farming। बहुत से ऐसे लोग हैं जो शहर में रहते हैं और खेती करना चाहते हैं लेकिन उनके पास जमीन नहीं है। बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो रहते तो गांव में हैं लेकिन उनकी शिकायत ये है कि उनके पास थोड़ी-सी जमीन है जिसे वे आय का जरिया नहीं बना सकते। अगर आप इन दोनों में से किसी एक से संबंधित हैं तो ये कहानी आपके लिए ही है।
यहां मैं जो कहानी आपको बताने जा रहा हूं वो कहानी है चेन्नई के रहने वाले विद्याधरन नारायण की, जो मात्र 200 स्क्वायर फुट की जगह में तकरीबन 10 लाख रुपये तक की सालाना कमाई कर रहे हैं। जाहिर है इतनी कम जगह में इतनी अधिक कमाई परंपरागत खेती से किसी भी हाल में संभव नहीं है, तो सवाल ये है कि फिर वे करते क्या हैं? दरअसल वे आधुनिक जमाने की नई खेती करते हैं, जिसे तकनीकी शब्दों में ‘माइक्रोग्रीन फार्मिंग’ कहा जाता है।
माइक्रोग्रीन क्या है?
माइक्रोग्रीन किसी भी पौधे की शुरुआती दो पत्तियां होती हैं। हालांकि हर पौधे की शुरुआती पत्तियों को माइक्रोग्रीन की तरह नहीं खाया जाता है। आप मूली, सरसो, मूंग, पालक, लेट्यूस, मेथी, ब्रोकली, गोभी, गाजर, मटर, चुकंदर, एमरेंथस, गेहूं, मक्का, बेसिल, चना, शलजम जैसी चीजों के माइक्रोग्रीन खा सकते हैं।
कैसे शुरू की इसकी खेती?
विद्याधरन के लिए इस खेती शुरुआत आसान नहीं थी। इससे पहले वह कई तरह के बिजनेस में हाथ आजमा चुके थे, लेकिन हर बार असफलता ही हाथ लगी। विद्याधरन ने अपने करियर की शुरुआत एक एनजीओ में नौकरी से की थी। इस नौकरी में उन्हें 1000 रुपये की सैलरी मिला करती थी। करीब 30 सालों तक वह सोशल वर्क में रहे, लेकिन इतने सालों बाद भी उनकी सैलरी 25-30 हजार रुपये तक ही पहुंची। विद्याधरन कहते हैं कि अगर उन्हें 1000 रुपये किसी छोटी-सी दुकान में भी लगाए होते तो उनके पैसे 25-30 हजार की तुलना में कहीं ज्यादा हो चुके होते।
सोशल वर्कमें ज्यादा पैसों की उम्मीद नहीं की जा सकती। ऐसे में उन्होंने कुछ बिजनेस शुरू करने की सोची। पहले उन्होंने किसानों से तमाम एग्रीकल्चर के प्रोडक्ट लेकर उन्हें बाजार में बेचने का बिजनेस किया, लेकिन उससे कुछ खास फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने कुछ टूरिस्ट कार खरीदीं और उन्हें किराए पर दिया, लेकिन वह बिजनेस भी नहीं चला। इसमें कमाई तो होती थी, लेकिन खर्चा भी बहुत ज्यादा होता था। उन्होंने कुछ छोटे-छोटे बिल्डिंग कॉन्ट्रैक्ट्स भी लिए, लेकिन उनमें भी फेल हो गए। आखिरकार उन्होंने इंटरनेट पर माइक्रोग्रीन के बारे में पढ़ा और इसे ही अपना बिजनेस बना लिया। इस बार उनकी किस्मत चमकी और उनका ये बिजनेस चल निकला।
अब सालाना कमाते हैं लाखों रुपये
वैसे तो विद्याधरन के पास थोड़ा खेत भी है, लेकिन वह उनके घर से करीब 80 किलोमीटर दूर है। ऐसे में वहां जाकर खेती करना और वापस घर आना बहुत ही मुश्किल काम था। उन्होंने इंटरनेट से ही माइक्रोग्रीन बिजनेस के बारे में सब कुछ सीखा और माइक्रोग्रीन उगाना शुरू कर दिया। 2013 में उन्होंने माइक्रोग्रीन उगाना शुरू कर दिया था, लेकिन 2014 में उन्होंने इसे होटल और सुपर मार्केट में बेचना शुरू किया। माइक्रोग्रीन के बिजनेस से आज के वक्त में विद्याधरन करीब 80 हजार रुपये तक प्रति माह कमा लेते हैं। इस बिजनेस में उनका पूरा हाथ बंटाती हैं उनकी पत्नी जयारानी और उनका एक सहायक भी मदद करता है।
दिलचस्प है माइक्रोग्रीन फार्मिंग से जुड़ी कहानी
विद्याधरन बताते हैं कि जब उन्होंने माइक्रोग्रीन को कॉमर्शियल करने की सोची तो उन्होंने ब्रॉशर यानी पैम्पलेट छपवाने का फैसला किया। प्रिंटिंग की दुकान में उनकी मुलाकात एक शख्स से हुई, जिसने बताया कि विदेशों में तो माइक्रोग्रीन बहुत पॉपुलर है। उन्होंने विद्याधरन की मुलाकात एक होटल शेफ से कराई। उस शेफ ने और उनके कुछ शेफ दोस्तों ने चेन्नई में हो रहे एक इंटरनेशनल कॉन्फे्रंस में शामिल होने का उन्हें मौका दिया। वहां पर विद्याधरन ने अपने माइक्रोग्रीन्स दिखाए और अपना आइडिया लोगों के सामने रखा। वहां पर उन्हें एक्सपर्ट लोगों की तरफ से बिजनेस शुरू करने की कुछ टिप्स मिलीं और उन्होंने अपना बिजनेस शुरू कर दिया। माइक्रोग्रीन के बिजनेस को शुरू करने से पहले विद्याधरन ने बहुत सारी स्टडी की, बहुत सारे वीडियो देखे, तब जाकर इसका बिजनेस शुरू किया।
10 हजार रुपये से 2 लाख का सफर
विद्याधरन ने इस बिजनेस को महज 10 हजार रुपये के निवेश से शुरू किया था. उसके बाद से वह अपने बिजनेस को अपडेट करते रहे और अब पूरा सेटअप लगभग 2 लाख रुपये का हो चुका है। आने वाले दिनों में डिमांड के हिसाब से वह इसे और बेहतर कर सकते हैं।
क्या है बिजनेस मॉडल?
माइक्रोग्रीन्स के अगर 100 ग्राम के पैक की बात करें तो वह 200-400 रुपये तक में बेचा जाता है। कीमत का कम या ज्यादा होना इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस वैरायटी का माइक्रोग्रीन है। इन माइक्रोग्रीन्स को होटल और सुपर मार्केट में भी बेचा जाता है और वहां पर 10-30 फीसदी तक का डिस्काउंट भी दिया जाता है।
विद्याधरन बताते हैं कि उनकी सेल्स का 40 फीसदी होटल से, 40 फीसदी सुपर मार्केट से और 20 फीसदी इंडिविजुअल से आता है। उनके पास पहले डिमांड आती है और फिर वह माइक्रोग्रीन उगाते हैं। वह हर रोज औसतन 3 किलो माइक्रोग्रीन की सप्लाई करते हैं। अधिकतर लोगों को वह खुद या उनके साथी ही डिलीवर करते हैं, वहीं कुछ लोग डंजो जैसे प्लेटफॉर्म से पिकअप बुक करवाकर भी माइक्रोग्रीन मंगवा लेते हैं।
चुनौतियां भी कम नहीं
विद्याधरन के लिए माइक्रोग्रीन फार्मिंग में सबसे बड़ी चुनौती है डिमांड। वह कहते हैं कि अगर उन्हें ज्यादा डिमांड आए तो वह और ज्यादा माइक्रोग्रीन उगा सकते हैं, लेकिन बाजार में इसकी मांग ही नहीं है। वह कहते हैं कि इस बिजनेस में माइक्रोग्रीन उगाना तो बहुत ही आसान है, लेकिन ग्राहक ढूंढना बहुत ही मुश्किल है। इस बिजनेस में बने रहना बहुत ही मुश्किल काम है। बहुत ही कम इंडिविजुअल लोग माइक्रोग्रीन लेते हैं। उनमें से भी अधिकतर लोग तो किसी डॉक्टर आदि के कहने पर माइक्रोग्रीन मंगवाते हैं। कुछ शेफ तुरंत चाहते हैं प्रोडक्ट, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता है। ऐसे में उन्हें मना करना पड़ता है।
भविष्य की क्या है प्लानिंग?
आने वाले दिनों में विद्याधरन एक ऐप डेवलप करवाने की प्लानिंग कर रहे हैं ताकि वह सब्सक्रिप्शन मॉडल लागू कर सकें। लोग ऐप के जरिए माइक्रोग्रीन खरीद सकेंगे। आने वाले दिनों में वह सलाद के बिजनेस में भी घुसने की प्लानिंग कर रहे हैं। वह इस सलाद में अपने ही माइक्रोग्रीन डालेंगे। वह अभी कुछ किताबें पढ़ रहे हैं ताकि सलाद बना सकें। आने वाले दिनों में वह अपने बिजनेस को एक नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी बेटी को आंत्रप्रेन्योरशिप की ट्रेनिंग दिलवाई है और जल्द ही उनकी बेटी सखी इस बिजनेस को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगी, जिनके नाम पर विद्याधरन ने अपने बिजनेस का नाम सखी माइक्रोग्रीन्स रखा है।