एक दिन सुबह-सुबह अपने गमलों से कुछ खरपतवार की निराई कर रहा था, तब दिमाग में एक प्रश्न उठा कि इसका नाम खरपतवार ही क्यों रखा गया, दूसरा क्यों नहीं?
बहुत उधेड़-बुन करने के बाद इसके एक-एक अक्षरों को कई बार पढ़ा। अंत में संधि-विच्छेद कर इसकी सार्थकता जानने की कोशिश की-
खर माने तिनका, पत माने पत्तियां और वार माने दिन।
यानि किसी भी दिन तिनका रूपी घास पत्तियों से लदकर मुफ्त का खाना-पानी लेने जनम ले लेता है यानि खरपतवार…
फिर दूसरा अर्थ सोचा-
खर माने तिनका
पतवार माने पार लगाने वाला। कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा।
खैर! खेतों में, बागवानी में खरपतवार का उगना भले ही सभी को नागवार लगता हो, लेकिन ये खरपतवार खेतों और बागों में मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है, साथ ही हम सबको आलसी होने से भी बचाता है। ये न उगे तो हम खेतों-बागों में जाना ही छोड़ दें। निराई-गुड़ाई से छुट्टी, बस पानी दिया और उसके बाद आराम ही आराम।
जय खरपतवार, जय मेहनत, जय स्वास्थ्य
-टेक लाल महतो (बोकारो, झारखंड) अपनी फेसबुक पोस्ट में