द बेटर फ़ार्मिंग डेस्क
नई दिल्ली। परंपरागत तरीके में अभी तक धान की नर्सरी ग्रामीण जन या बड़े किसान अपने खेत में डालते रहे हैं, उसके बाद रोपनी करते हैं। नर्सरी में किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। तकनीकी विकास के साथ इसमें बदलाव आया है। इसका एक उदाहरण है हाइड्रोपोनिक्स धान नर्सरी। ये उन किसानों के लिए बेहद फायदेमंद है, जो बड़े पैमाने पर धान की खेती करते हैं, वहीं नर्सरी का बिजनेस करने वालों के लिए भी ये एक नया व्यापार बन कर उभरा है।
वर्तमान समय की जरूरत
धान की खेती के लिए सिंचाई का पानी तो दुर्लभ हो ही रहा है, किसानों को श्रमिकों की अनुपलब्धता से भी जूझना पड़ रहा है। इसके साथ ही उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग, मीथेन जैसी बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन और अप्रत्याशित मौसम पैटर्न, मिट्टी की उर्वरता में कमी, उत्पादकता में कमी, खराब पैदावार, खराब जल प्रबंधन आदि समस्याएँ भी हैं। ऐसी परिस्थिति में हाइड्रोपोनिक्स धान नर्सरी एक विकल्प बनकर उभरा है। इससे उच्च गुणवत्ता वाले धान का उत्पादन करना आसान तो हो ही जाएगा, खेती की लागत भी कम हो जाएगी।
खुले मैदान में नर्सरी तैयार करने में नर्सरी के गलने, पत्तियों के पीले होने, सफ़ेद होने और टिप जलने की अधिक घटनाएं देखी गई हैं। हाइड्रोपोनिक्स सिस्टम भारत में धान उत्पादकों को प्रभावित करने वाली कई समस्याओं जैसे प्रतिकूल जलवायु और घटती भूमि और पानी का एक समाधान हो सकता है।
क्या है हाइड्रोपोनिक्स धान नर्सरी
पारंपरिक प्रणाली में धान की नर्सरी के लिए खेत में ही एक जगह तैयार की जाती है, उसके बाद उसमें समुचित खाद, खरपतवारनाशक या कीटनाशक आदि डालकर धान की छिटाई की जाती है। उसमें बराबर पानी भी दिया जाता है। इस तरह 21-30 दिन बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जबकि हाइड्रोपोनिक्स विधि में धान के नर्सरी बिना मिट्टी के तैयार किए जाती है। पौधों को उनकी जड़ों के साथ पोषक तत्व के घोल में या पर्लाइट, वर्मीक्यूलाइट और बजरी जैसे निष्क्रिय माध्यम में उगाया जाता है। चूंकि जड़ क्षेत्र में पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं इसलिए पौधे तेजी से बढ़ते हैं और पारंपरिक गीले-बेड नर्सरी की तुलना में लगभग आठ गुना कम पानी का उपयोग करके 7 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। पारंपरिक प्रणाली में एक किलोग्राम धान के बीज के लिए 3000-5000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि हाइड्रोपोनिक्स विधि में ये काम मात्र 400 लीटर पानी में हो जाता है।
ऑर्गेनिक धान उगाना आसान
पारंपरिक विधि की तुलना में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि फसलें नियंत्रित वातावरण में उगाई जाती हैं, नर्सरी खरपतवारों से मुक्त होती है और कीड़ों से सुरक्षित रहती है। ऐसे में महंगे और जहरीले कीटनाशकों या शाकनाशियों का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस विधि में तापमान, प्रकाश, पानी और पोषण को इष्टतम परिस्थितियों में पूरी तरह से समायोजित किया जा सकता है, जिससे हाइड्रोपोनिक्स धान की नर्सरी सीमित पानी और सीमित भूमि क्षेत्र के साथ भी अत्यधिक उत्पादक बन जाती है। हाइड्रोपोनिक्स धान नर्सरी का उपयोग करके उगाए गए पौधे खेत में अच्छी तरह से रोपित होते हैं और विशेष रूप से देर से मानसूनी बारिश के दौरान उपयोगी होते हैं।
हाइड्रोपोनिक्स धान नर्सरी के लाभ
• हाइड्रोपोनिक्स से उगाए गए पौधे तेजी से वृद्धि करते हैं, तेजी से कल्ले पैदा करते हैं, समान रूप से परिपक्व होते हैं और अधिक उपज देते हैं।
• फसलें जल्दी पक जाती हैं जिससे जल्दी कटाई होती है और बेहतर रिटर्न मिलता है।
• 95% कम पानी का उपयोग होता है।
• देर से आने वाले मानसून की स्थिति के लिए उपयुक्त है।
• नर्सरी के लिए भूमि का उपयोग अन्य प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है।
• यांत्रिक रोपाई से पौधों के बीच एक समान दूरी और घनत्व सुनिश्चित होता है।
• यंत्रीकृत प्रत्यारोपण कम जनशक्ति के साथ प्रति दिन 1.2 से 1.6 हेक्टेयर को कवर करता है।
भविष्य हाइड्रोपोनिक्स धान नर्सरी का ही है
आयुर्वेट रिसर्च फाउंडेशन देश में धान के लिए हाइड्रोपोनिक्स तकनीक विकसित करने में अग्रणी है। भारतीय कृषि मंत्रालय ने आयुर्वेट प्रो ग्रीन हाइड्रोपोनिक्स मशीन की व्यावसायिक परीक्षण रिपोर्ट दी थी। संगठन पिछले 10 वर्षों से इस पर काम कर रहा है और उसे मशीन संरचना और प्रक्रिया के लिए पेटेंट प्राप्त हुआ है। 2009 से आयुर्वेद रिसर्च फाउंडेशन ने लगभग 2,500 धान किसानों के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 50 गांवों, उड़ीसा और हरियाणा के सोनीपत और पानीपत में प्रयोग और क्षेत्रीय परीक्षण किए हैं। आज तक कुल 81 हेक्टेयर में हाइड्रोपोनिक्स धान नर्सरी का उपयोग करके उगाए गए धान के पौधों की रोपाई की गई है।
2016 में नाबार्ड ने हरियाणा के सोनीपत जिले में 85 हेक्टेयर में हाइड्रोपोनिकली उगाई गई धान की नर्सरी और मशीनीकृत प्रत्यारोपण के विकास पर तीन साल की परियोजना को वित्त पोषित किया। परियोजना के तहत सात दिनों में हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली का उपयोग करके ट्रे में धान के पौधे उगाए गए। आठवें दिन मैकेनिकल ट्रांसप्लांटर का उपयोग करके किसानों के खेतों में रोपाई की गई।